मेरा नाम सिम्बा है, और मैं हूँ सबका चहेता! पूरी कॉलोनी में मेरी धूम है। मेरी सफेद, मुलायम फर और प्यारी-प्यारी आँखें देखकर हर कोई मुझसे मिलने को बेताब रहता है। बच्चे तो मुझे देखकर "सिम्बा,सिम्बा" चिल्लाते हुए मेरे पीछे दौड़ते हैं। मैं बस एक नजर डालता हूँ, और वे बस देखते रह जाते हैं। क्या कहें, मैं कॉलोनी का सेलिब्रिटी हूँ! कुछ बच्चे तो मेरे साथ सेल्फी भी लेते हैं।
मॉम-डैड मुझे अपने बेटे ईशान के लिए लाए थे लेकिन सच कहूँ तो अब वे मुझे अपना बेटा ही मानते हैं । मेरे लिए बहुत सारे खिलौने लाते हैं। मेरे पहले जन्मदिन पर मैंने केक भी काटा जिस पर सिम्बा लिखा था. उस दिन मेरा हेयरकट पार्लर में हुआ था। ईशान मेरा सबसे अच्छा दोस्त है, हम दोनों मिलकर बहुत मस्ती करते हैं। मुझे तो लगता है कि इस घर का सबसे अहम सदस्य मैं ही हूँ!
लेकिन फिर... एक दिन सब कुछ बदल गया।
मॉम-डैड ऑफिस से घर पर आए तो उनके साथ एक अजीब सा कुत्ता था। हाय राम! ऐसा गंदा और बदसूरत कुत्ता मैंने पहले कभी नहीं देखा। उसकी हालत देखकर मुझे लगा, "अरे, ये कौन सा मुसीबत हमारे घर आ गई है?" उसकी हालत इतनी खराब थी कि मैं और ईशान दोनों उसे देखकर ही नाक-भौं सिकोड़ने लगे।मम्मी ने उसे नहलाया धुलाया। उसे खाना दिया। वह इतना भूखा था कि सारा खाना मिनटों में चट कर गया. पापा ने ईशान और मुझे पास बुलाया और कहा,'ये मुगली है, ये हमारे ऑफिस के नीचे रहता था। इसकी मां इसे छोड़कर चली गयी है। आज ये हमारी कार के नीचे आते-आते बचा है। ये अब से हमारे साथ ही रहेगा। तुम दोनों इसे भी अपना दोस्त बना लो।' हमने न चाहते हुए भी मुगली से हाथ मिलाया।
मॉम-डैड के सामने तो हम मुगली के साथ बैठ जाते थे पर उनके बाहर जाते ही हम उससे कतई बात नहीं करते थे। भला, मैं, जो इतना खूबसूरत हूँ, ऐसे गंदे कुत्ते से कैसे बात कर सकता हूँ? " ईशान भी मुगली को अपने दोस्तों से नहीं मिलवाता था। हम दोनों ही उसे बिल्कुल पसंद नहीं करते थे। मुगली एक कोने में उदास सा बैठा रहता।
उस दिन ईशान के स्कूल की छुट्टी थी।मॉम-डैड ऑफिस गए थे। ...
मैं और ईशान आंगन में खेल रहे थे। अचानक मुगली (अरे हां, वो सड़क वाला कुत्ता) ज़ोर-ज़ोर से भौंकने लगा । हम दोनों चौंक गए। तभी हमने देखा, एक बड़ा सा बंदर घर के अंदर घुस आया था! उसकी बड़ी-बड़ी आँखें और डरावनी शक्ल देखकर मेरी तो जान ही निकल गई। मैं जल्दी से बिस्तर के नीचे छिप गया। और ईशान? वो भी डर के मारे कांपने लगा था।
लेकिन मुगली वह तो जैसे कोई सुपरहीरो निकला ! बिना रुके भौंकता रहा, बंदर के पीछे-पीछे भागता रहा । मुझे तो यकीन नहीं हो रहा था, इतना बहादुर! कुछ देर बाद बंदर को भी डर लग गया और वह भाग खड़ा हुआ!
उस दिन मुझे और ईशान को समझ आ गया कि हमने मुगली को कितना गलत समझा था। उसने हमारी जान बचाई। मुगली न होता तो बंदर हमें खा ही जाता। उस दिन के बाद से हम तीनों दोस्त बन गए। अब मुगली भी मेरा सबसे अच्छा दोस्त है. हम तीनों खूब मस्ती करते हैं!